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मुग़ल साम्राज्य की हिंदू रानियों की अनकही कहानियाँ: इतिहास के पन्नों में छिपे राज

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मुग़ल साम्राज्य की हिंदू रानियों का महत्व

Hindu Queens Of The Mughal Emperors (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Hindu Queens Of The Mughal Emperors (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

मुग़ल साम्राज्य की हिंदू रानियाँ: जब हम मुग़ल साम्राज्य की बात करते हैं, तो हमारे मन में भव्य दरबार, विशाल किले, और अनमोल आभूषणों की छवियाँ उभरती हैं। लेकिन इस ऐतिहासिक काल में कुछ ऐसे रिश्ते भी थे, जो सांस्कृतिक और धार्मिक सीमाओं को पार करते थे। मुग़ल सम्राटों की हिंदू रानियाँ न केवल सुंदरता की प्रतीक थीं, बल्कि वे राजनीति, कूटनीति और सामाजिक समरसता की मिसाल भी थीं। उनका जीवन केवल महलों तक सीमित नहीं था, बल्कि वे शाही निर्णयों, धार्मिक सहिष्णुता और दरबारी रणनीतियों में सक्रिय रूप से शामिल थीं। आइए, जानते हैं मुग़ल शासकों की हिंदू पत्नियों के जीवन से जुड़ी कुछ दिलचस्प और ऐतिहासिक कहानियों के बारे में-


1. हरका बाई (Harka Bai)

1. हरका बाई (Harka Bai)

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(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

अकबर की राजपूत रानी हरका बाई, जिन्हें आमतौर पर जोधा बाई के नाम से जाना जाता है, आमेर के राजा भारमल की संतान थीं। 1562 में अकबर से उनका विवाह एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ, जिसने मुग़ल-राजपूत संबंधों को नई दिशा दी। इस विवाह के माध्यम से अकबर को राजपूतों का समर्थन प्राप्त हुआ और उन्होंने कई राजपूतों को अपनी सेना और प्रशासन में उच्च पदों पर नियुक्त किया।

अकबर ने हरका बाई को उनके धर्म के अनुसार पूजा करने की अनुमति दी और उनके लिए एक अलग मंदिर बनवाया। यह कदम अकबर की 'सुल्ह-ए-कुल' (सार्वजनिक समरसता) की नीति का प्रतीक बना। हरका बाई से अकबर को जहांगीर (सलिम) नामक पुत्र प्राप्त हुआ, जो बाद में मुग़ल सम्राट बना।


2. माणावती बाई (Manavati Bai): जहांगीर की प्रमुख पत्नी

2. माणावती बाई (Manavati Bai): जहांगीर की प्रमुख पत्नी

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(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

राजा मानसिंह की बहन माणावती बाई का विवाह जहांगीर से हुआ था। वह अत्यंत सुंदर और शिक्षित महिला थीं, जिन्हें दरबार में बहुत सम्मान प्राप्त था। राजपूत गौरव का प्रतीक माणावती बाई का विवाह एक और उदाहरण था जिससे मुग़लों और राजपूतों के बीच संबंध और गहरे हुए। जहांगीर की आत्मकथा में इस बात का उल्लेख मिलता है। उन्होंने अपनी आत्मकथा 'तुजुक-ए-जहांगीरी' में माणावती बाई के साथ संबंधों का उल्लेख किया है, जो उनकी निकटता को दर्शाता है।


3. ताज बीबी बिल्किस मकानी (Jagat Gosain): शाहजहां की हिंदू मां

3. ताज बीबी बिल्किस मकानी (Jagat Gosain): शाहजहां की हिंदू मां

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(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

जगत गोसाई का जन्म मारवाड़ (जोधपुर) के शाही राठौड़ राजघराने में हुआ था। वे राजा उदय सिंह की पुत्री थीं। उनका विवाह मुग़ल सम्राट जहाँगीर (तब युवराज सलीम) से हुआ था, यह विवाह एक राजनीतिक समझौते के तहत हुआ, जो अकबर की राजपूत-मुग़ल मैत्री नीति का हिस्सा था।

इस्लामी नाम: ताज बीबी बिल्किस मकानी

विवाह के बाद उन्हें इस्लाम कबूल करवाया गया और उनका नाम "ताज बीबी बिल्किस मकानी" रखा गया, जो बाद में शाही हरम में उनका आधिकारिक नाम बन गया।

शाहजहां का जन्म और मां का प्रभाव

5 जनवरी, 1592 को जगत गोसाई ने खुर्रम (बाद में शाहजहां) को जन्म दिया। शाहजहां को बचपन से ही उनकी मां के धार्मिक सहिष्णुता, हिंदू मूल्यों और संस्कारों का प्रभाव मिला। यह भी माना जाता है कि शाहजहां की स्थापत्य कला और सांस्कृतिक दृष्टिकोण में कहीं न कहीं उनकी हिंदू मां के प्रभाव की छाया रही।

सांस्कृतिक समरसता की प्रतिमूर्ति

जगत गोसाई का जीवन उस युग की धार्मिक सहिष्णुता, वैवाहिक राजनीति और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक था। वो न केवल एक राजनीतिक गठबंधन की रानी थीं, बल्कि एक ऐसी हिंदू मां थीं, जिन्होंने एक महान मुग़ल सम्राट को जन्म दिया और उसे सांस्कृतिक बहुलता का पाठ पढ़ाया।

कला-संस्कृति की पोषक

जगत गोसाई ने शाही दरबार में हिंदू कला और संगीत को संरक्षण दिया। उनके संस्कारों ने शाहजहां की रुचि स्थापत्य कला और वास्तुकला की ओर मोड़ी, जिसका उदाहरण ताजमहल है।


4. मलका-ए-हिंद (Malika-E-Hind): बहादुर शाह ज़फ़र की हिंदू बेगम

4. मलका-ए-हिंद (Malika-E-Hind): बहादुर शाह ज़फ़र की हिंदू बेगम

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(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

बहादुर शाह ज़फ़र, अंतिम मुग़ल बादशाह, की एक हिंदू रानी 'लालबाई' के नाम से प्रसिद्ध थीं। उन्हें दरबार में अत्यंत प्रभावशाली माना जाता था। हालांकि प्रमुख ऐतिहासिक ग्रंथों में लालबाई का विवरण बहुत सीमित है, लेकिन कुछ लोक, उर्दू-फ़ारसी साहित्य, और दिल्ली के ऐतिहासिक आख्यानों में उनका उल्लेख होता है, जो उनकी खास स्थिति को दर्शाते हैं।

लालबाई: बहादुर शाह ज़फ़र की हिंदू रानी और दरबार की सशक्त हस्ती

"लालबाई" के बारे में माना जाता है कि वे एक हिंदू राजपरिवार या कुलीन ब्राह्मण परिवार से थीं। उनका विवाह बहादुर शाह ज़फ़र से किसी राजनीतिक या प्रेमपूर्ण कारण से हुआ। विवाह के पश्चात, वे इस्लामी रीति से हरम में शामिल की गईं, किंतु वे दरबार में एक विशिष्ट स्थान रखती थीं।

दरबारी प्रभाव

लालबाई को बहादुर शाह ज़फ़र की प्रिय रानियों में गिना जाता था। उनका शास्त्रों और संगीत में गहन ज्ञान था, और वे दरबार के सांस्कृतिक आयोजनों में प्रमुख भूमिका निभाती थीं। कुछ उल्लेखों के अनुसार, वे रानियों की आपसी राजनीति में भी काफी कुशल थीं और उनका रानी ज़ीनत महल से प्रतिद्वंद्विता जैसा रिश्ता भी रहा।

1857 के स्वतंत्रता संग्राम में संदर्भ

1857 की क्रांति के दौरान, जब बहादुर शाह ज़फ़र ने अपने किले का नियंत्रण अंग्रेज़ों को सौंप दिया, तो लालबाई की भूमिका गूढ़ रही। कुछ लोककथाओं में कहा जाता है कि उन्होंने ज़फ़र को आत्मसमर्पण न करने की सलाह दी थी।

धार्मिक सहिष्णुता की प्रतीक

लालबाई उस युग की उन चुनिंदा महिलाओं में थीं जो धार्मिक विविधता और समरसता की प्रतीक बनीं। उनकी मौजूदगी मुग़ल दरबार में हिंदू महिलाओं के सांस्कृतिक और राजनीतिक हस्तक्षेप का प्रतिनिधित्व करती है। लालबाई, बहादुर शाह ज़फ़र की हिंदू रानी, न केवल एक सुंदर रानी थीं बल्कि एक बौद्धिक और सांस्कृतिक शक्ति का स्रोत भी थीं। उनका व्यक्तित्व आज भी इतिहास के उन अनकहे पन्नों में दर्ज है, जो धार्मिक मेल-जोल, दरबारी राजनीति और मुग़ल हरम की विविधता को रेखांकित करता है।


अन्य प्रमुख हिंदू रानियां और उनके रोचक प्रसंग

अन्य प्रमुख हिंदू रानियां और उनके रोचक प्रसंग

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(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

अकबर की अन्य राजपूत रानियां

अकबर ने सिर्फ जोधा बाई से ही नहीं, बल्कि और भी कई राजपूत राजकुमारियों से विवाह किया, जिनमें बूंदी, जैसलमेर और बीकानेर की राजकुमारियां शामिल थीं। ये शादियां युद्ध के बजाय शांति और गठबंधन की नीति के तहत की गईं।

शाही खानपान पर हिन्दू रानियों का प्रभाव

हिंदू रानियों की पसंद और खानपान की परंपराओं ने शाही रसोई में नए व्यंजनों को जन्म दिया। दाल-भाटी, घी से बने हलवे, और तमाम राजस्थानी सब्जियों को दरबारी खानपान में शामिल किया गया।

धार्मिक समारोहों में भागीदारी

अकबर, जहांगीर और शाहजहां की हिंदू पत्नियों को होली, दीपावली और रक्षाबंधन जैसे त्योहारों को मनाने की अनुमति थी। अकबर ने तो यहां तक आदेश दिया था कि रक्षाबंधन के दिन सभी दरबारी सैनिक बहनों से राखी बंधवाकर सुरक्षा का वचन लें।

इन रानियों की शिक्षा और कला में रुचि

हिंदू रानियां सिर्फ सुंदर ही नहीं थीं, वे विदुषी और कलाप्रेमी भी थीं। उन्हें संगीत, नृत्य, साहित्य और चित्रकला में गहरी रुचि थी।

जोधा बाई द्वारा संस्कृत ग्रंथों का फारसी में अनुवाद किया गया। अकबर के कहने पर कई हिंदू ग्रंथों का फारसी में अनुवाद किया गया। वहीं रानी माणावती बाई और अन्य रानियों ने संगीतकारों को संरक्षण दिया और संगीत महफिलों का आयोजन करवाया।

मुगल शासकों पर हिंदू पत्नियों का प्रभाव

हिंदू रानियों का मुग़ल राजनीति और प्रशासन पर भी अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ा। अकबर की ‘दीन-ए-इलाही’ इस बात की प्रेरणा माना जाता है। अकबर ने विभिन्न धर्मों की पत्नियों और विद्वानों के प्रभाव से सर्वधर्म समभाव की विचारधारा अपनाई। हिंदू रानियों के कारण ही कई बार हिन्दू सैन्यअधिकारियों और पुजारियों को दरबार में स्थान दिया गया।

अंतिम समय और विरासत

मुगलों की इन हिन्दू रानियों ने न केवल मुगल इतिहास को समृद्ध किया, बल्कि उन्होंने एक ऐसे युग की नींव रखी जिसमें सांस्कृतिक विविधता को अपनाया गया। कई रानियों के नाम पर महल और भवन इस बात का प्रमाण हैं। आगरा, फतेहपुर सीकरी और लाहौर में इन रानियों के लिए बनाए गए महलों के खंडहर आज भी इतिहास के गवाह हैं।

लोककथाओं और साहित्य में स्थान

जोधा बाई और माणावती बाई जैसी रानियों की कहानियां आज भी लोकगीतों, टीवी शोज़ और उपन्यासों में जीवित हैं। मुग़ल शासकों की हिंदू रानियां सिर्फ राजनीतिक रणनीति का हिस्सा नहीं थीं, वे उस युग की सांस्कृतिक, सामाजिक और धार्मिक विविधता का प्रतीक थीं। उन्होंने जिस गरिमा, समझदारी और सौंदर्य के साथ शाही जीवन को अपनाया, वह आज भी प्रेरणादायक है। इन रानियों की कहानियां इस बात की मिसाल हैं कि सच्चे प्रेम और परस्पर सम्मान की कोई धार्मिक सीमा नहीं होती।


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